2024 में मोदी के सामने कौन... दिल्ली के अशोका होटल में इंडिया गठबंधन के चौथी मीटिंग में भी यह सवाल खूब जोर-शोर से उछला. बैठक में शामिल नेताओं की नजर नीतीश कुमार और राहुल गांधी की तरफ थी, लेकिन ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर सबको चौंका दिया.
सूत्रों के मुताबिक खरगे के नाम का समर्थन आम आदमी पार्टी ने भी किया. अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद के लिए दलित चेहरे को आगे लाने की पैरवी की.
ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के प्रस्ताव को नीतीश कुमार के लिए दूसरा बड़ा झटका माना जा रहा है. पहला झटका बेंगलुरु बैठक के दौरान नीतीश को लगा था, तब उनके संयोजक बनाने पर गठबंधन के दलों में सहमति नहीं बन पाई थी.
गठबंधन की राजनीति में संयोजक का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है. 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा के संयोजक रहे वीपी सिंह सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री बने थे.
बड़ा सवाल- ममता का मूड कैसे बदला?
18 दिसंबर को ममता बनर्जी ने पत्रकारों से कहा था कि 2024 चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पर फैसला होगा. उन्होंने कलेक्टिव लीडरशिप में लड़ने की बात कही थी. वहीं 19 दिसंबर की मीटिंग में ममता ने खरगे के नाम का प्रस्ताव रख दिया.
जेडीयू खेमे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि आखिर ममता का मूड क्यों बदल गया?
अप्रैल 2023 में ममता बनर्जी के कहने पर ही नीतीश कुमार ने पटना में गठबंधन के दलों को एकजुट किया था. उस वक्त ममता और कांग्रेस के बीच अनबन की खबरें मीडिया में खूब छपती थी.
हालांकि, एक चर्चा अगस्त के अंतिम हफ्ते में राहुल गांधी और अभिषेक बनर्जी के बीच मुलाकात को लेकर भी हो रही है. इस मुलाकात में अभिषेक ने बंगाल में कैसे चुनाव लड़ा जाएगा, इस पर राहुल से चर्चा की थी.
संयोजक के बाद पीएम रेस से बाहर
नीतीश कुमार संयोजक के बाद पीएम पद की रेस से बाहर हो गए हैं. हालांकि, खुलकर इसका ऐलान नहीं किया गया है. खरगे के नाम आने के बाद भविष्य में भी नीतीश पीएम बन पाए, इसकी संभावनाएं बहुत ही कम लग रही है.
पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार अली अनवर कहते हैं- कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन की मीटिंग में बड़ी ही चतुराई से आम लोगों को एक संदेश देने का काम किया है. खरगे दलित हैं और अगर यह मैसेज चला जाता है कि वे पीएम बनेंगे, तो कांग्रेस को अपना पुराना वोटबैंक वापस मिल सकता है.
अली अनवर के मुताबिक मंगलवार की मीटिंग में जो घटनाएं हुई है, उससे 2-3 चीजें साफ हो गई है.
- चुनाव बाद प्रधानमंत्री पद फाइनल होगा और कांग्रेस के नेता खासकर खरगे बड़े दावेदार होंगे.
- नीतीश कुमार बिहार और उसके पास सीट बंटवारे में बड़ी भूमिका निभाएंगे. चुनाव बाद अब उनके भविष्य पर फैसला होगा.
नीतीश क्यों नहीं बन पा रहे इंडिया के नेता?
1. कांग्रेस नीतीश कुमार को आगे कर दक्षिण और मध्य भारत में लड़ाई को कमजोर नहीं बनाना चाहती है. नीतीश अगर प्रधानमंत्री दावेदार बनते हैं, तो बंगाल, केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इंडिया के घटक दल को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
2. नीतीश की राजनीति दक्षिणपंथ की रही है. ऐसे में अगर उनके नाम को आगे किया जाता है, तो मुस्लिम वोटबैंक भी तीसरे मोर्चे के दलों में शिफ्ट हो सकता है. यूपी में बीएसपी और बिहार में एआईएमआईएम जैसे दल सक्रिय है.
3. चुनाव से पहले किसी एक चेहरे को अगर आगे किया जाता है, तो चुनाव उसी चेहरे के इर्द-गिर्द सिमट जाएगी. कांग्रेस को हालिया विधानसभा चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ा है. इसलिए पार्टी नीतीश कुमार को आगे नहीं करना चाहती है.
4. इंडिया गठबंधन के अधिकांश दलों को कांग्रेस के साथ सीट बंटवारा करना है. ऐसे में यह दल खुलकर नीतीश कुमार का समर्थन करे, यह संभव नहीं है. इसलिए नीतीश के नाम को आगे करने में अधिकांश दलों को हिचकिचाहट है.
अब मीटिंग के अंदर की बात
अंग्रेजी अखबार डेक्केन हेराल्ड के मुताबिक बैठक में नीतीश कुमार काफी नाराज दिखे. अपने भाषण के दौरान नीतीश तब हत्थे से उखड़ गए, जब डीएमके सांसद टीआर बालू ने उनके बयान का अनुवाद मांग लिया.
नीतीश ने भाषण के दौरान कहा कि सभी लोग अंग्रेजी मानसिकता से बाहर निकल जाए. यहां की जनता ने अंग्रेजों को उखाड़ फेंका है. आप लोग इसे समझिए.
नीतीश ने भाषण के दौरान कोई पद न लेने की बात भी दोहराई. उन्होंने कहा कि मेरे बारे में लगातार अफवाह फैलाया जाता है. इससे आप लोग दूर रहिए. मुझे किसी पद की लालसा नहीं है.
मीटिंग खत्म होते ही नीतीश कुमार पटना के लिए निकल गए. मीटिंग में शामिल एक नेता ने डेक्केन हेराल्ड से कहा कि नीतीश क्यों नाराज थे, यह किसी को समझ में नहीं आया. आगे क्या होगा, यह भी कोई नहीं बता सकता.
गठबंधन के अगुवा नीतीश नाराज क्यों, 3 वजहें...
दिल्ली से लेकर पटना तक नीतीश कुमार की नाराजगी की वजह टटोली जा रही है. कई कयास और अटकलों के बारे राजनीतिक विश्लेषक चर्चा कर रहे हैं. जेडीयू सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार की नाराजगी की 3 बड़ी वजहें हैं...
1. कांग्रेस का ढुलमुल रवैया
जेडीयू सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस का ढुलमुल रवैया है. नीतीश कुमार कांग्रेस को गंभीर सहयोगी नहीं मान रहे हैं.
नीतीश के सहयोगियों का कहना है कि 2022 के सितंबर में इसकी पहल शुरू हुई, लेकिन 15 महीने बीत जाने के बाद भी गठबंधन का ठोस प्रभाव जमीन पर नहीं दिखा है. जेडीयू सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार इस सबके लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार मान रहे हैं.
जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर एबीपी न्यूज़ से कहा कि कांग्रेस वादाखिलाफी कर रही है. पार्टी ने मार्च 2023 में एक मीटिंग के दौरान सबको एकजुट करने पर नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की बात कही थी, लेकिन गठबंधन बन जाने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने इसकी पहल नहीं की.
2. लालू यादव का पॉलिटिकिल प्रेशर
नीतीश कुमार पर लालू यादव का पॉलिटिकिल प्रेशर भी है. लालू यादव चाहते हैं कि नीतीश बिहार छोड़ दिल्ली की राजनीति करें और बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके बेटे तेजस्वी यादव के लिए छोड़ दें.
सियासी गलियारों में इसको लेकर एक समझौते का भी जिक्र किया जाता है. कहा जा रहा है कि यह समझौता जुलाई 2022 में हुआ था. हालांकि, खुलकर न तो जेडीयू के नेता इसपर कुछ भी बोलना चाह रहे हैं और न ही आरजेडी के नेता.
3. नेताओं के बिगड़े बोल से भी खफा
कांग्रेस और डीएमके नेताओं के बिगड़े बोल से भी नीतीश कुमार नाराज बताए जा रहे हैं. जेडीयू सूत्रों का कहना है कि अभी जिस तरह से बयानबाजी चल रही है. यह आगे भी चलता रहा, तो बीजेपी चुनाव जीत ले जाएगी.
नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की मीटिंग में सभी नेताओं को बीजेपी के ट्रैप न फंसने की सलाह दी. नीतीश ने अपने भाषण के दौरान कहा कि सबको साथ लेकर चलने की बात कीजिए.
नीतीश ने मीटिंग में कहा कि छपने के लिए कोई नेता बयान देता है, तो उस पर सभी पार्टी के लोग ध्यान दीजिए.