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मालदीव ने खत्म किया हाइड्रोग्राफिक सर्वे एग्रीमेंट, कैसे ये फैसला हिन्द महासागर में भारत की सुरक्षा पर डालेगा असर?maldives-ends-hydrographic-survey

 


जब से मालदीव की नई सरकार सत्ता में आई तब से ही यह देश भारत को एक के बाद एक झटके दे रहा है. कुछ दिन पहले ही मालदीव की मुइज्जु सरकार ने भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग माने जाने का दावा किया था. अब इसी देश ने साल 2019 में भारत और मालदीव के बीच हुए जल समझौते (हाइड्रोग्राफिक सर्वे एग्रीमेंट) को खत्म करने की बात कही है. 


दरअसल इस समझौते को 7 जून, 2024 को रिन्यू किया जाना था, लेकिन अब मालदीव ने इसे आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है. रिपोर्ट की मानें तो मालदीव सरकार के इस फैसले से भारतीय उच्चायोग को इसकी जानकारी भी दे दी है. 


ये वही पार्टी है जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को सत्ता से हटाने के लिए चुनाव में 'इंडिया-आउट' कैंपेन का नारा दिया था. मालदीव के इन फैसलों को 'इंडिया आउट' कैंपेन के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है. 


ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि क्या है ये इंडिया आउट कैंपेन,  मालदीव के इस कदम से हिन्द महासागर में भारत की सुरक्षा रणनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 



क्या है हाइड्रोग्राफिक सर्वे एग्रीमेंट


8 जून, 2019 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालदीव यात्रा के तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था. हाइड्रोग्राफिक सर्वे एग्रीमेंट के तहत भारत को मालदीव के क्षेत्रीय जल का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने, इन इलाकों के चट्टानों, लैगून, समुद्र तट, समुद्री धाराओं और ज्वार के स्तर का अध्ययन करने और चार्ट बनाने की इजाजत दी गई थी. 

इसी समझौते के तहत पहला सर्वे मार्च 2021 में, दूसरा सर्वेक्षण मई 2022 में और तीसरा सर्वेक्षण 19 फरवरी से 26 फरवरी 2023 के बीच किया था. इस समझौते के तहत होने वाले इन सर्वे को भारतीय नौसेना और मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स साथ मिलकर करते थे. 

इस जल समझौते के अनुसार अगर दोनों देशों में से कोई एक पक्ष इस एग्रीमेंट को छोड़ना चाहता है, तो उस पक्ष को इसके समाप्ति से छह महीने पहले दूसरे पक्ष को अपने फैसले के बारे में बताना होगा. इस समझौते को हर साल पांच साल में रिन्यू किया जाना था. 

अब जब मालदीव सरकार ने इस समझौते के रद्द करने का अपना फैसला भारतीय उच्चायोग को बता दिया है तो यह समझौता 7 जून, 2024 को खत्म हो जाएगा. 

अब समझते हैं कि मालदीव ने ऐसा फैसला क्यों लिया 


मालदीव सरकार के अनुसार इस तरह के सर्वे में कई संवेदनशील जानकारियां सामने आ सकती है, जिसे सिर्फ मालदीव को पता रहना चाहिए. इसलिए ऐसे सर्वे में किसी अन्य देश का शामिल होना सही नहीं है. देश की सुरक्षा करने के लिए मालदीव की सेना की क्षमता में सुधार करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे अच्छा है.


भविष्य में अगर हाइड्रोग्राफिक सर्वे किया जाता है तो ये पूरी तरह मालदीव प्रबंधन के तहत किया जाएगा और इसके बारे में जानकारी भी सिर्फ मालदीव के लोगों को ही दी जाएगी.  


गुरुवार को कैबिनेट की बैठक के बाद मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय में आयोजित एक सम्मेलन में बोलते हुए मालदीव के सार्वजनिक नीति के अवर सचिव मोहम्मद फिरुजुल ने कहा कि 'हफ्ता-14' रोडमैप का हिस्सा अन्य उन सभी देशों के साथ द्विपक्षीय और राजनयिक समझौतों को रद्द करना है जो मालदीव की संप्रभुता को खतरे में डाल देंगे. 


भारत से ज्यादा चीन और तुर्की की ओर रुझान 


मालदीव में वर्तमान में जिस पार्टी की सरकार बनी है (प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव) , उस पार्टी पर चीन का काफी असर माना जाता है. इसके अलावा मालदीव की नई सरकार ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भी तुर्की को चुना. इतना ही नहीं इस यात्रा के दौरान तुक्री में मालदीव का दूतावास भी खोला गया.

राजनीतिक विश्लेषक अशोक कुमार ने एबीपी से बातचीत में कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद मोहम्मद मुइज़्ज़ु का एक के बाद एक लिया गया फैसला तो यही बता रहा है कि उनके द्वारा उठाया गया कोई भी कदम 'पूरी तरह चीन के असर में हैं.'


खास बात ये है कि मुइज्जु से पहले जिस पार्टी की सरकार थी. उसके राष्ट्रपति मोहम्मद इब्राहिम सोलिह ने ‘इंडिया फर्स्ट’ का नारा दिया था और मुइज़्ज़ु चुनाव प्रचार के दौरान ही पूर्व राष्ट्रपति के रुख से बिल्कुल उलट नजर आ रहे हैं. 


अब समझते हैं कि ये इंडिया आउट कैंपेन है क्या? 


साल 2018, मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव हुए. इस चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की जीत होती है और पीपीएम पार्टी के नेता अब्दुल्लाह यामीन राष्ट्रपति पद से हार जाते हैं. यामीन को हमेशा से ही  चीन का करीबी माना जाता रहा है. चुनाव के कुछ समय के बाद अब्दुल्लाह यामीन को एक अरब डॉलर के सरकारी धन का दुरुपयोग मामले में दोषी पाया जाता है और साल 2019 में यामीन को पांच साल की सजा सुनाई जाती है. हालांकि उस वक्त कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए यामीन के जेल की सजा को नजरबंदी में बदल दिया गया था. 


अब साल 2021 के 30 नवंबर को उन पर लगे सभी आरोपों को खारिज करके उन्हें रिहाई दे दी जाती है. इसके बाद पीपीएम पार्टी के नेता यामीन एक बार फिर राजनीति में वापसी करते हैं. इस बार प्रचार के दौरान यामीन तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के ‘इंडिया फर्स्ट’ की पॉलिसी के खिलाफ  ‘इंडिया आउट' का अभियान चलाते है. इस चुनाव में यामीन अपने भाषणों के दौरान लोगों से अपील करने लगे कि अपने घरों की दीवारों पर ‘इंडिया आउट' लिखें.


साल 2023 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद सोलिह के खिलाफ मोहम्मद मुइज्जु ने दावेदारी पेश की. मुइज्जु ने प्रचार के दौरान अपने देश में भारतीय सेना की उपस्थिति के खिलाफ 'इंडिया आउट' का नारा दिया था. उन्होंने इसे नारे का सहारा लेते हुए विरोध प्रदर्शन भी आयोजित किए. उनका कहना था कि मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी इस देश की संप्रभुता के लिए खतरा है. 


इन फैसलों का हिन्द महासागर में भारत की सुरक्षा रणनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?


अक्टूबर में हुए चुनाव में मालदीव में प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव यानी पीपीएम के नेता मोहम्मद मुइज्जु की जीत हुई. इस पार्टी को हमेशा से ही चीन के करीबी रिश्तों के लिए जाना जाता है. अब जब देश में मुइज्जु की सरकार बन गई, तब अटकलें लगाई जाने लगी कि नई सरकार सत्ता में आते ही मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की ‘इंडिया फर्स्ट’ पॉलिसी वाले मालदीव का रुख बदलने पर काम करेगा. 


ऐसे में एक सवाल उठता है कि मालदीव के ताजा रुख से हिंद महासागर में भारत के हितों पर असर क्या असर पड़ेगा. 


बीबीसी की एक रिपोर्ट में इसी सवाल के जवाब में नई दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर अरविंद येलेरी कहते हैं, " अंतरराष्ट्रीय राजनीति 25 साल पहले यानी 1996-1997 से ब्लू इकोनॉमी या ओशन इकोनॉमी (समुद्री अर्थव्यवस्था) पर तेज़ी से केंद्रित हुई है. वहीं भारत हिंद या प्रशांत महासागर के नजदीक है और यही कारण है कि समुद्र से जुड़ी सामरिक रणनीति में भारत की भूमिका बढ़ गई है."


प्रोफेसर आगे कहते हैं, "ब्लू इकोनॉमी की राजनीति के बाद से भारत ने दक्षिण चीन सागर, अरब सागर और हिंद महासागर में अपने सामरिक हितों पर ध्यान देना शुरू किया है. इस दौरान ही भारत के मॉरीशस, मालदीव और सेशेल्स जैसे देशों से संपर्क बढ़ने लगे. इन देशों में सर्विलांस, ईंधन सप्लाई और कई और चीजों को लेकर भारत के हित हैं. पिछले 25-30 साल से भारत ने यहां ध्यान देना शुरू किया है."


वहीं जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा का मानना है कि भारत के लिए मालदीव आर्थिक और सामरिक लिहाज से भी काफी अहमियत रखता है. यही कारण है कि मालदीव में जब भी कोई नई सरकार सत्ता में आती है तो भारत पूरी कोशिश करता है कि नई सरकार कुछ हद भारत के पाले में रहे. वहीं दूसरी तरफ चीन भी मालदीव में अपना पकड़ बनाना चाहता है और भारत निश्चित तौर पर उसका बड़ा प्रतिस्पर्द्धी है.


जेएनयू प्रोफेसर अरविंद येलेरी आगे कहते हैं, " पिछले कुछ सालों में चीन भी हिंद महासागर में अपना असर बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ है. यही कारण है कि यह देश दक्षिण चीन सागर से निकल कर हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है. ऐसे में मालदीव में जो नई सरकार आई है, वो चीन के लिए काफी सकारात्मक संभावनाएं लेकर आई है. लेकिन भारत पर इसका अच्छा असर नहीं पड़ेगा. अब नई सरकार भारत और चीन के साथ कैसे रिश्ते रखना चाहता है ये तो आने वाले चार पांच साल के दौरान में पुख्ता तौर पर सामने आए ही जाएगा. भले ही भारत के सैनिक मालदीव में बहुत कम थे लेकिन उनका वापस लौटना उसके लिए चिंता की बात है."

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