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'किशोरियां यौन इच्छा पर काबू रखें' वाली कलकत्ता HC की सलाह पर खफा हुआ सुप्रीम कोर्ट, जजों को समझाया


नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले पर शुक्रवार को कड़ी आपत्ति जाहिर की। हाईकोर्ट के इस आदेश में किशोरियों को ‘अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण’ रखने की सलाह दी गई थी। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों को आपत्तिजनक और गैर-जरूरी बताया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि ये टिप्पणियां संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त किशोरों के अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन हैं।

पीठ ने मामले में पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया। उसने कहा, 'हमारा प्रथम दृष्टया यह मानना है कि न्यायाधीशों से व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती।’ शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपनी सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान को न्याय मित्र नियुक्त किया। न्यायालय ने न्याय मित्र की सहायता के लिए अधिवक्ता लिज मैथ्यू को अधिकृत किया है।

शीर्ष अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर, 2023 के उस फैसले का स्वत: संज्ञान लिया। इसमें टिप्पणी की गई थी कि किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और दो मिनट के सुख के लिए खुद को समर्पित नहीं करना चाहिए। कलकत्ता हाईकोर्ट ने रेप के एक मामले में अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ एक किशोर के अनुरोध पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी। उसे एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए सत्र अदालत ने दोषी ठहराया था। लड़की के साथ लड़के का 'रोमांटिक अफेयर' था।

हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के फैसले को रद्द कर दिया था। कम उम्र में यौन संबंधों से उत्पन्न होने वाली कानूनी जटिलताओं से बचने के लिए स्कूलों में व्यापक यौन शिक्षा का आह्वान किया था।

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