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अनार और फुलझड़ी जैसे पटाखों का धुआं भी बढ़ाता हैं सांसों पर बोझ, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट


 दिवाली के पहले ही दिल्ली की हवा दमघोंटू हो चुकी है। प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने भी बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंता जता चुका है। वहीं दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार भी प्रदूषण को लेकर तमाम कवायद कर रही है। प्रदूषण वाली आबोहवा में पटाखों के प्रदूषक और शोर भी हवा को और दूषित कर रहे हैं। पराली का जलना, वाहनों का प्रदूषण, मौसमी प्रभाव, भौगोलिक स्थिति और पटाखों के कॉकटेल ने हवा को अधिक प्रदूषित कर दिया है। पराली, वाहनों के प्रदूषण को लेकर तो लगातार बात होती रहती है लेकिन पटाखों का प्रदूषण भी दिवाली के पहले और उसके बाद हवा को कई दिन तक विषाक्त और अस्वच्छ कर देता है। कई बार लोगों के मन में इस बात को प्रश्न उठता है कि पटाखों से कितना प्रदूषण होता है। चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन, पुणे और पुणे विश्वविद्यालय की ओर से किए गए एक अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो छोटे मोटे पटाखे भी हवा में बड़ी मात्रा में प्रदूषण घोलते हैं।

इस अध्ययन के तहत विशेषज्ञों ने कई तरह के पटाखों से होने वाले प्रदूषण का आंकलन किया। इस रिसर्च में मिले परिणामों के मुताबिक 1000 मिर्ची बम की चटाई जलाने पर पीएम 2.5 का स्तर 47789 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाता है। इसी तरह एक महताब जलाने से हवा में पीएम 2.5 का स्तर 34068 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाता है। बच्चों को सांप जलाने में बहुत मजा आता है। लेकिन सांप बनाने वाली एक टिकिया जलाने से हवा में पीएम 2.5 का स्तर 64849 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाता है। एक फुलझड़ी जलाने पर हवा में 10898 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 का स्तर पहुंच जाता है। वहीं एक अनार जलाने पर हवा में पीएम 2.5 का स्तर 5640 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवम्बर को एक बार फिर से कहा कि ऐसे पटाखे जिनमें बेरियम कैमिकल का इस्तेमाल किया गया है इनकी बिक्री पूरे देश में प्रतिबंधित की जाए। आतिशबाजी में हरा रंग पैदा करने के लिए बेरियम का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं यह पटाखों को लंबी शेल्फ-लाइफ देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। पटाखों में सीसा, सल्फर,आर्सेनिक और क्लोरीन की अलग-अलग मात्रा इस्तेमाल की जाती है। केंद्र सरकार ने खतरनाक रासायनिक नियम (2000) के तहत इन्हें भी प्रतिबंधित कर रखा है। बेरियम के संपर्क में आने से गंभीर गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल संकट पैदा हो सकता है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर आतिशबाजी एवं अनार में किया जाता है।

बम और अनार पहुंचाते हैं सबसे ज्यादा नुकसान

एम्स के नेत्र विज्ञान विभाग की ओर से दिल्ली और एनसीआर में 2014 से 2019 के बीच ऐसे मरीजों पर अध्ययन किया जिनकी आंखों को दिवाली पर पटाखे जलाते समय नुकसान पहुंचा था। डॉक्टर्स ने लगभग 646 मरीजों पर किए अपने अध्ययन में पाया कि 14 साल से कम आयु के बच्चों की आंखों को पटाखों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा था। लगभग 65 फीसदी मामलों में पाया गया कि पटाखा जलाते समय सावधानी न बरतने से हादसे हुए। 94.5 फीसदी मामलों में पटाखे जलाते समय बच्चों के अभिभावक उनके साथ नहीं थे। वहीं बच्चों ने पटाखे जलाते समय आंखों पर किसी तरह का प्रोटेक्शन नहीं पहना था। 64 फीसदी बच्चों को बम जलाते समय आंखों को नुकसान पहुंचा। वहीं 23 फीसदी बच्चों की आंखें अनार जलाते समय हादसे का शिकार हुईं। 7 फीसदी बच्चों की आंखें रॉकट जलाते समय तो 6 फीसदी बच्चों की आंखों को फुलजड़ी जलाते समय नुकसान पहुंचा।

सफदरजंग के डॉक्टर्स की ओर से किए गए एक अध्ययन के मुताबिक दिवाली के दौरान इन पटाखों से सबसे ज्यादा लोग जलते हैं 

64 फीसदी लोग अनार जलाते समय

13 फीसदी बम जलाते समय

9 फीसदी लोग चकरी जलाते समय

8 फीसदी लोग रॉकेट जलाते समय

3 फीसदी लोग महताब से जले

3 फीसदी लोग मोमबत्ती से जले

रिपोट के मुताबिक दिल्ली एनसीआर में पटाखों से जलने वालों में लगभग 73 फीसदी 5 से 30 साल के बीच के लोग थे।

इनमें से लगभग 91 फीसदी 5 फीसदी से कम जले

क्या ग्रीन पटाखे सच में हैं ग्रीन

अगर आपको दिवाली पर पटाखे जलाने ही हैं तो आप ग्रीन पटाखों का विकल्प चुन सकते हैं। CSIR की संस्था नेशनल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर साधना रायलू कहती हैं कि सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे जलाने से 30 फीसदी तक कम पार्टिकुलेट मैटर निकलता है। वहीं पटाखों से निकलने वाली हानिकारक गैसें 40 फीसदी तक घट जाती हैं। इन पटाखों को बनाने के लिए पायरोटैक्निक कंपोजीशन का इस्तेमाल किया जाता है। ग्रीन पटाखों की मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है। अगर किसी को ग्रीन पटाखों की फैक्ट्री लगानी है तो उसे बनाने की तकनीक और लाइसेंस CSIR-NEERI से लिया जा सकता है। कई कंपनियां CSIR-NEERI से लाइसेंस लेकर इन पटाखों को बना रही हैं।

ये है ग्रीन पटाखों की खूबियां

NEERI ने खास तरह के पटाखे तैयार किए हैं। इन्हें जलाने के बाद इसमें इस्तेमाल किए गए खास तरह के केमिकल के चलते इन पटाखों से पानी के कण पैदा होते हैं। जिससे नाइट्रोजन और सल्फर के कण हवा में नहीं जाते। इन्हें नीरी ने सेफ वाटर रिलीजर नाम दिया है।

नीरी ने स्टार क्रैकर नाम से कुछ पटाखे तैयार किए हैं जिनको जलाने से सल्फर और नाइट्रोजन जैसे प्रदूषक तत्व नहीं निकलते हैं। इन्हें सेफ थर्माइट क्रैकर कहा जाता है। इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग किया जाता है।

नीरी की ओर से पटाखों की जो तकनीक तैयार की गई है उसमें एल्युमीनियम का इस्तेमाल 60 फीसदी तक कम होता है। इन पटाखों को सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL तकनीक के आधार पर तैयार किया गया है।

नीरी ने कुछ ऐसे पटाखे तैयार किए हैं जिनको जलाने पर हानिकारक गैसों की बजाय खुशबू निकलती है।

ग्रीन पटाखे मैग्नीशियम और बेरियम के बजाय पोटेशियम नाइट्रेट और एल्यूमीनियम जैसे वैकल्पिक रसायनों का उपयोग करता है, और आर्सेनिक और अन्य हानिकारक प्रदूषकों के बजाय कार्बन का उपयोग करता है। नियमित पटाखे 160-200 डेसिबल के बीच ध्वनि उत्सर्जित करते हैं, जबकि हरे पटाखे लगभग 100-130 डेसिबल तक सीमित होते हैं। ये पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं हैं लेकिन नियमित पटाखे की तुलना में काफी कम प्रदूषक हैं लेकिन इन सभी फायदों के साथ, हरे पटाखे का सबसे बड़ा मुश्किल यह है कि केवल उन निर्माताओं को ही इन पटाखे का उत्पादन करने की अनुमति होगी जिनका सीएसआईआर के साथ समझौता है।

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