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सांगोला का भगवान है रावण, जानिए क्यों नहीं पूजे जाते हैं दूसरे देवता?

 


दशहरे के दिन देश के हर कोने में सामान्य तौर से रावण बुराई का प्रतीक है मगर कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां दशानन की पूजा की जाती है। महाराष्ट्र के अकोला जिले के सांगोला गांव में भी रावण की पूजा की जाती है। इसके अलावा कानपुर के शिवाला में भी रावण की पूजा होती है। ग्रेटर नोएडा के बिसरख में तो न रामलीला होती है और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है। इसके अलावा राजस्थान के मंडोर और हिमाचल के बैजनाथ में भी रावण के मंदिर हैं। मगर महाराष्ट्र के अकोला में रावण की विशेष पूजा की जाती है। यहां राक्षसराज की मूर्ति भी है। सांगोला गांव के लोगों की मान्यता है कि रावण की मूर्ति हर शनिवार और दशहरे के दिन जीवंत हो उठती है। ग्रामीणों का मानना है कि दशानन रावण न सिर्फ महान राजा और योद्धा था, बल्कि विद्वान के साथ कलाकार भी था, इसलिए वह उसके सकारात्मक पहलू की पूजा करते हैं।

गलती से बनी रावण की मूर्ति

सांगोला के ग्रामीणों ने बताया कि कभी किसी मूर्तिकार ने रावण ने मूर्ति गलती से बना दी। सांगोला के चंद्रकांत पोरे ने बताया कि करीब 350 साल पहले इस इलाके में एक ऋषि रहते थे। जब ऋषि ब्रह्मलीन हुए तो गांव वालों ने उनकी प्रतिमा बनाने का फैसला किया। मूर्तिकार ने मूर्ति बनाना शुरू किया। उसके मूड में क्या आया, उसने ऋषि की जगह दस मुंह वाले रावण की मूर्ति बना दी। यह मूर्ति पांच फीट ऊंची है। लंकापति रावण श्रद्धा संस्थान के बुजुर्ग सदस्य दाजी मोरे ने बताया कि जब ऋषि की जगह रावण की मूर्ति बनी तो गांववाले उन्हें देवता मानने में हिचकरने लगे, मगर सपने वाली जनश्रुतियों ने धारणा को बदल दिया। गांव वालों को सपना आया कि रावण की मूर्ति गांव में लाना चाहिए। ग्रामीण इसे बैलगाड़ी पर लेकर अपने गांव की ओर बढ़े। जब बैलगाड़ी गांव की सीमा पर पहुंची तो बैलों ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद गांव वालों ने वहीं मूर्ति की स्थापना कर दी। करीब 300 साल से लगातार लोग रावण की पूजा कर रहे हैं। इस मंदिर में हर शनिवार को पूजा के लिए भीड़ उमड़ती है। दशहरे के दिन इसकी विशेष पूजा होती है।

गर्व से रखते हैं बच्चों का नाम रावण

उत्तर भारत में लोग अपने बच्चों और परिजनों का नाम रावण नहीं रखते हैं, मगर 1500 से अधिक आबादी वाले सांगोला में ऐसा नहीं है। इस इलाके के लोग रावण नाम रखने से भी परहेज नहीं करते हैं। सांगोला के जिला परिषदीय स्कूल में एक टीचर हैं, जिनका नाम रावण मदाने है और उन्हें अपने नाम पर गर्व है। मदाने बताते हैं कि सांगोला के लोग पीढ़ियों से रावण की पूजा करते आ रहे हैं, इसलिए उनका नाम रखने में कुछ अटपटा नहीं लगता है। मदाने ने बताया कि रावण को पूजने वालों ने लंकापति रावण श्रद्धा संस्थान बना रखा है। यह संस्थान सुनिश्चित करता है कि राक्षस राज रावण को उसका हक मिले। वैसे तो यूपी के बिसरख और कानपुर में भी रावण की पूजा होती है, मगर दोनों इलाके के लोग अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। अकोला जिले के सांगोला में रहने वाले कोई दूसरा त्योहार नहीं मनाते हैं और न ही किसी अन्य देवताओं की पूजा करते हैं। उनका भरोसा रावण पर ही दृढ़ है। वह हर समस्याओं का समाधान रावण की मूर्ति से ही पाते हैं। जिस दंपति का गोद लंबे समय तक सूना रहता है, वह मन्नत मांगते हैं। उनका विश्वास है कि रावण के कृपा से उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है और फिर वह बच्चे का नाम रावण रख देते हैं।

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