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निठारी कांड: क्या 19 मासूमों की मौत के पीछे था बड़ा रैकेट, कोली-पंढेर बना दिए गए सिर्फ मोहरे?


CRIME DESK, New Delhi.
साल 2006 में 7 मई को उत्तर प्रदेश को सबसे अत्याधुनिक शहर नोएडा के एक थाने में युवती की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई जाती है. पुलिस ने इस मामले की  जांच शुरू कर दी जैसा कि आम तौर पर ऐसे मामलों में होता है. लेकिन जांच के दौरान जो बातें सामने आईं उससे पूरा भारत ही नहींं, दुनिया भी सकते में आ गई.  नोएडा के निठारी गांव में बनी कोठी नंबर डी-5 के पीछे एक नाले से कंकाल बरामद होने लगे. करीब 13 साल बाद इस कांड के मुख्य आरोपियों सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बरी कर दिया गया. इन दोनों को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुना दी थी. 

क्या कोली-पंढेर सिर्फ मोहरे हैं?

फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सीबीआई ने जनता के भरोसे से धोखाधड़ी की है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में 14 मई 2015 को आरोपी सुरेंद्र कोली ने एक अर्जी दी थी, जिसमें केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा विशेषज्ञों से करवाई गई निठारी कांड की जांच रिपोर्ट भी थी. 

रिपोर्ट में शवों के पोस्टमार्टम की निगरानी करने वाले नोएडा सीएमओ डॉ. विनोद कुमार के हवाले से कहा गया था कि सभी शवों के धड़ गायब थे. शक ये जताया गया कि इनके अंग बेचे गए थे. छोटे बच्चों के अंगों की प्रत्यारोपण की बहुत मांग भी थी.

शक इसलिए भी हुआ क्योंकि शवों के शरीर से इनके अंग बेहद चिकित्सकीय तरीके से काटे गए थे. डॉ. कुमार ने ये शक भी जताया था कि नरभक्षण का आरोप शवों के गायब हुए अंगों से ध्यान भटकाने के लिए लगाया गया है.

हाईकोर्ट ने इस अर्जी का उल्लेख करते हुए टिप्पणी करते हुए कहा कि समिति ने सीबीआई को मानव अंगों के अवैध कारोबार के एंगल पर जांच करने की सिफारिश की थी. वहीं नोएडा के अस्पतालों में हुए प्रत्यारोपण का रिकॉर्ड जांचने और हत्याओं में बड़ी गैंग के शामिल होने की जांच के लिए कहा गया था, लेकिन सीबीआई ने कुछ नहीं किया. पंढेर के बंगले डी-5 के पड़ोस में डी-6 में रहने वाले डॉक्टर अमित का बयान तक नहीं लिया, जो मानव अंगों के अवैध कारोबार में पकड़ा गया था.

सीबीआई ने बस इतना बताया कि डी-6 बंगले की जांच की गई, लेकिन कुछ नहीं मिला. हाईकोर्ट ने कहा इतना काफी नहीं था. मामले में हाईकोर्ट ने ये शक भी जताया कि डॉ. विनोद ने ये साफ शक जताया था कि एक शव तीन महीने में सड़ना शुरू होता है. जबकि उस शव को पूरी तरह सड़ने में 3 साल का समय लग जाता है. 

ऐसे में कई बच्चे एक साल से भी कम समय पहले मारे गए थे, फिर भी उनकी कुछ ही हड्डियां क्यों मिल रही हैं? सीबीआई ने मानव अंगों के अवैध कारोबार की वजह से बच्चों व महिलाओं के गायब होने के एंगल से कोई जांच ही नहीं की.

हाईकोर्ट ने कहा कि कोली के बयान के अनुसार हत्याएं करने के दौरान वो किसी स्वचालित अवस्था में पहुंच जाता था, वो पीड़ितों को ललचाता, घर में लाता, हत्या करता, सेक्स करता, शरीर के टुकड़े करता, उन्हें पकाकर खाता, बचे हुए अवशेषों को बैग में भरता साथ ही उन्हें नाली में भी बहाता, लेकिन इस पूरे प्रोसेस के दौरान उसके घर का दरवाजा किसी ने नहीं खटखटाया.  इस तरह उसने 16 हत्याओं को भी अंजाम दे दिया.

हाईकोर्ट ने कहा ये सब कुछ बहुत अजीब लगता है. इन 16 घटनाओं में वो एक बार भी विफल नहीं हुआ. ये पूरा प्रोसेस विश्वास करने योग्य नहीं है. कोर्ट ने आगे कहा, आरोपी के बयान के अनुसार वो बंगला नं. डी5 में हत्याएं करता था, लेकिन वहां फॉरेंसिक जांच में खून के कोई निशान नहीं मिले हैं. हाईकोर्ट ने कहा सीबीआई दोनों दोषी साबित करने में नाकाम साबित हुई. इस केस में सीबीआई ने अच्छी तरह से जांच नहीं की.

हाईकोर्ट ने इस केस की जिस तरह से विवेचना की गई है उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्या ये मामला सुरेंद्र कोली या मोनिंदर पंढेर पर लगे आरोपों से कहीं आगे का है? सीधे शब्दों में कहें तो क्या ये पूरा कांड 'अंग व्यापार' से जुड़ा हुआ था जिसके पीछे कोई बड़ा और पहुंच वाला रैकेट था. इस गैंग ने बहुत चालाकी से सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर तक पूरे मामले को सीमित कर दिया? इसके साथ ही सुरेंद्र कोली को 'नरभक्षी' भी करार दे दिया गया.

पूरा केस क्या था

साल 2006 के आसपास देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी में बच्चों के गायब होने की घटनाएं हो रही थीं. इसका पर्दाफाश तब हुआ जब 7 मई 2006 को पुलिस के पास एक युवती की गुमशुदगी का मामला आया. आरोप लगा कि युवती को मोनिंदर पंढेर ने नौकरी दिलाने के बहाने बुलाया था.

जिसके बाद युवती घर नहीं लौटी. युवती के पिता ने नोएडा के सेक्टर 20 थाने में गुमशुदगी का केस दर्ज करवाया. मामले की जांच में पता चला ये सिर्फ एक युवती के गायब होने की खबर नहीं है, बल्कि कई बच्चों  से जुड़ी एक बड़ी खबर है. जब पुलिस ने मामले की जांच की तो 29 दिसंबर 2006 को नोएडा में मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले से 19 कंकाल मिले थे. जांच में पाया गया कि इनमें कई बच्चे और युवतियां थीं. मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र सिंह कोली को इसके बाद गिरफ्तार कर लिया गया. 

इस जघन्य कांड की खबर पूरी दुनिया में फैल गई और नोएडा में के निठारी में विदेशी पत्रकार भी मामले को कवर करने के लिए पहुंचने लगे. उधर सरकार पर दबाव बढ़ रहा था तो मामले को सीबीआई के पास ट्रांसफर कर दिया गया.

इंसाफ के इंतजार में कितने साल?

8 फरवरी 2007 को इस केस में कार्रवाई को आगे बढ़ाते हुए सुरेंद्र कोली और पंढेर को 14 दिन की सीबीआई हिरासत में भेजा गया. इसके बाद मई 2007 को सीबीआई ने पंढेर को अपनी चार्जशीट में अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया. इसके ठीक दो महीने बाद कोर्ट की फटकार के बाद फिर से सीबीआई ने  उन्हें सह अभियुक्त बना दिया. 13 फरवरी 2009 को सीबीआई कोर्ट ने पंढेर और कोली को 15 वर्षीय किशोरी के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई. ये पहली बार था जब इन दोनों आरोपियों को मामले में फांसी की सजा मिली थी.

इसके बाद 3 सितंबर 2014 को कोली के खिलाफ कोर्ट ने मौत का वारंट जारी किया. वहीं 4 सितंबर 2014 को कोली को फांसी देने के लिए मेरठ जेल ले जाया गया. 12 सितंबर 2014, ये वो दिन था जो इन दोनों के लिए फांसी के पहले आखिरी रात थी. इसी रात वकीलों के समूह ने डेथ पेनल्टी लिटिगेशन ग्रुप्स ने कोली को मृत्युदंड देने पर पुनर्विचार याचिका दायर की. इस याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा.

12 सितंबर 2014 को ही सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा पर 29 अक्टूबर तक के लिए रोक लगा दी. 28 अक्टूबर 2014 को सुरेंद्र कोली की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया. दोनों की दया याचिका को राष्ट्रपति द्वारा भी रद्द कर दिया गया.

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.के.एस. बघेल ने कोली की मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए कहा कि उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने में "अत्यधिक देरी को देखते हुए" यह असंवैधानिक होगा. इसके बाद 2010 से दोनों ने लगातार 14 बार दोनों ने उन्हें दी गई सजा के खिलाफ अपील की. जिसकी सुनवाई 2023 से जस्टिस मिश्रा और जस्टिस रिजवी की पीठ ने एक साथ सुनवाई शुरू की. वहीं 16 अक्टूबर 2023 को सुनाए गए फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरेंद्र कोली को 12 केसों जबकि मोनिंदर सिंह पंढेर को 2 मामलों में दोषमुक्त कर दिया.

12 साल में लगीं 134 तारीखें

सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर ने फांसी की सजा के खिलाफ साल 2010 से अपीलें दाखिल कर रहे थे. उनकी अपीलों पर अलग-अलग खंडपीठों में सुनवाई हुई. जिसके लिए कुल 134 तारीखें लगाई गईं. हालांकि विभिन्न कारणों के चलते एक भी अपील पर फैसला नहीं सुनाया गया.

पीड़ितों को इंसाफ का इंतजार

अब दोनों आरोपियों को बरी किए जाने के बाद सवाल ये उठता है किन इन 19 हत्याओं को आरोपी कौन है? साथ ही हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद इंसाफ के इंतजार में बैठे उन बच्चों के माता पिता अपनी उम्मीद खो चुके हैं. द हिंदू की एक खबर के अनुसार सोमवार को जैसे ही इस केस में आरोपियों को बरी किए जाने की खबर सामने आई, उस समय नोएडा में इस हत्याकांड में मारे गए एक बच्चे के पिता ने पंढेर के बंगले पर जोर से एक ईंट फेंकी. दरअसल ये आरोपियों के छूटने पर बच्चे के पिता की निराशा थी.                   

वहीं इस कांड में 14 साल की बेटी को खो चुके 63 वर्षीय झब्बू लाल और 60 वर्षीय सुनीता देवी को इस फैसले पर बहुत दुखी हैं. उन्होंने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा, "हम इस फैसले से संतुष्ट नही हैं. जब कोई शख्स एक के बाद एक कई बच्चों को मार कर बरी हो सकता है तो सोचिए एक या दो मर्डर करने वालों को क्या ही सजा मिल सकती है."              

झब्बू लाल के अनुसार वो इस केस में अब तक 4 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं. साथ ही इंसाफ की लड़ाई लड़ने के लिए उन्होंने अपना एक प्लॉट भी बेच दिया. इसी तरह इस सीरियल किलिंग में अपने बच्चों को खो चुके कई माता-पिता की इस फैसले के बाद निराशा साफ झलकती है. 

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