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महिला आरक्षण विधेयक से क्या होगा बदलाव? जानिए बिल से जुड़ी पांच महत्वपूर्ण बातें

संसद के विशेष सत्र (Parliament Special Session) के दूसरे दिन नई संसद में महिलाओं से जुड़ा ऐतिहासिक बिल पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में मंगलवार को महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) पेश किया। इस विधेयक के कानून में बदलने के बाद सदन में महिलाओं की 33 प्रतिशत अनिवार्यता हो जाएगी।

महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित

महिला आरक्षण बिल- इस बिल में लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई है। इसे 128वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत पेश किया गया है। इस संशोधन के बाद लोकसभा में एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की होगी। इस विधेयक से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलने के साथ ही आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।

महिलाओं की बढ़ेगी भागीदारी

महिला आरक्षण विधेयक में दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रावधान है। इसके तहत दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी अनिवार्य हो जाएगी। इससे राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं को सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ने में गति मिलेगी। इस कानून के बाद लोकसभा में कम से कम 181 महिला सांसद चुनकर आएंगी, फिलहाल सदन में महिला सदस्यों की संख्या 82 है।

सभी विधानसभाओं में भी लागू होगा प्रावधान

लोकसभा और दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर ही देश के सभी राज्यों के विधानसभाओं में भी ये बदलाव लागू होगा। जैसे लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी। ठीक उसी तरह से सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की 33 प्रतिशत सीटें अनिवार्य हो जाएगी। इसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित सीटों में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी।

आरक्षण का 15 वर्षों तक रहेगा प्रभाव

इस बिल के पास होने के बाद लोकसभा, दिल्ली विधानसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाएगी। महिलाओं के लिए लाए गए आरक्षण 15 वर्षों तक प्रभाव में रहेगा। इसके साथ ही इसमें प्रावधान है कि सीटों का आवंटन रोटेशन प्रणाली के तहत की जाएगी।

27 वर्षों से लटका है विधेयक

महिला आरक्षण बिल पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ है। इसे पहली बार 12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने पेश किया था। हालांकि, उस वक्त ये बिल पास नहीं हो सका था। इसके बाद भी तमाम सरकारों ने इसे कानून का रूप देने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।


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