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सभी घर वाले हुए एक, इरादे हैं नेक? सियासी वजूद को बचाने की कवायद, या विस्तार? - Siyasi Wazood


-  काज़ी रशीद मसूद की पाठशाला में हुए कई विधायक तैयार

सहारनपुर। सहारनपुर की सियासी ज़मीन पर अपना एक खास वजूद रखने वाले परिवार को एक ही मंच पर एकत्र होंने के बाद यहां सियासी गलियारों मे सियासी गर्माहट देखने को मिल रही है। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सहारनपुर संसदीय सीट पर अपना दावा प्रस्तुत करने के उद्देश्य से सहारनपुर की सियासी ज़मीन पर 6 दशकों तक खुद को प्रमाणित करने वाले मरहूम आली जनाब काज़ी रशीद मसूद के परिवार जनों की सियासी नैया हिचकोले खाती नज़र आई तो उनकी विरासत का स्वाभाविक सवाल खड़ा हुआ है। बसपा से अनुशासन हीनता के आरोप लगा कर जिस तरह काज़ी रशीद मसूद के राजनीतिक उत्तराधिकारी एवम सियासी जगत में अपने बयानों से खलबली पैदा करने वाले इमरान मसूद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है और इमरान मसूद को अपना पक्ष भी नही रखने का अवसर भी नही दिया गया है।पिछले दशक में जहां  काज़ी रशीद मसूद के जीवनकाल में ही परिवार में बिखराव भी देखने को मिला लेकिन आज जिस तरह राशिद मसूद और रशीद मसूद का परिवार एक साथ एकत्र हुआ है और उनके समर्थकों में उत्साह बढ़ाने के लिए काफी सुखद माना जा रहा है और इस अवसर पर सभी प्रमुख वक्ताओं ने भावी  सियासी सफर तय करने की बागडोर पूर्व विधायक एवम पूर्व चेयरमैन इमरान मसूद को दी है जबकि विगत दिनों उनके कैराना लोक सभा से चुनाव लड़ने की खबरे भी तैरती रही लेकिन इमरान मसूद का इस संबंध में जहां रालोद में शामिल होने अथवा नही होने का खंडन नही किया गया बल्कि  कैराना लोकसभा को अपनी जन्मस्थली बयान और सहारनपुर लोकसभा को अपनी कर्मस्थली बताया गया है। इमरान द्वारा सियासी कारवां को आगे बढाने के लिए चुनाव लड़ने की ज़रूरत बताया गया है। 

फिलहाल भले ही किसी पार्टी मे जाने का निर्णय नही लिया गया है लेकिन कांग्रेस और रालोद में से किसी एक दल में जाने की चर्चा को भी जन्म मिला है। सहारनपुर ज़िले को कई विधायक देने वाले आली जनाब काज़ी रशीद मसूद को राजनीति की पाठशाला कहा जाता रहा है लेकिन जिस तरह सपा एक कांग्रेस विधायक के साथ शामिल होने के बावाजूद जहां इमरान मसूद न केवल खुद टिकट लेने में पिछड़ गए वहीं कांग्रेस विधायक मसूद अख्तर को भी टिकट दिला पाने में सफल नही हो पाए जबकि कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव एवम दिल्ली का प्रभारी भी बना दिया था लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य में योगी सरकार के बदलाव के माहौल को भांपते हुए ही सपा में शामिल हुए थे लेकिन लम्बी पारी नही खेल पाने के हालातों को भांपते हुए ही वह नई समिकरण विकसित करने के लिए बसपा में गए थे जहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवम सांसद राहुल गांधी की टीवी चैनल पर प्रशंसा उन्हें पार्टी से निष्कासन का कारण बनी और सियासी दलों द्वारा नकार दिए जाने की चुनोती को स्वीकारते हुए आज जो कुछ हुआ उसे स्वाभाविक सियासी प्रक्रिया ही माना जा रहा है साथ ही सियासत में उनकी मुखालफत करने वालो का तो यही कहना और मानना है कि जो आज हुआ है वो आली जनाब काज़ी रशीद मसूद की सियासी विरासत को बचाने की कवायद ही है?

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