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Madhya Pradesh Election 2023: मध्य प्रदेश चुनाव से इन पांच सवालों के मिले जाएंगे जवाब?


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मध्यप्रदेश विधानसभा की तारीखों का ऐलान आज होने वाला है. इसके साथ मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल और गरमाने वाला है. इस बार का विधानसभा चुनाव कई मायनों में अहम माना जा रहा है. एक तरफ जहां बीजेपी फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए हर राजनीतिक समीकरणों पर नजर गड़ाए हुए है. वहीं दूसरी तरफ सत्ता से बाहर रही कांग्रेस अब किसी भी सूरत में सत्ता पर काबिज होना चाहती है. आम आदमी पार्टी की एंट्री ने इस बार की चुनावी जंग को और दिलचस्प बना दिया है.

BJP या कांग्रेस किसका हिंदू कार्ड चलेगा?

कांग्रेस ने इस बार के विधानसभा चुनावों में वोटरों को साधने के लिए बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड के जवाब में खुद को सबसे बड़ा हिंदू बताया है. एक सभा के दौरान तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा भी था कि गर्व से कहता हूं कि मैं हिंदू हूं,लेकिन बेवकूफ नहीं. यहीं नहीं उन्होंने बीजेपी पर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का आरोप भी लगाया. अप्रैल माह में कांग्रेस ने पुजारियों के साथ धर्म संवाद भी किया. इस सम्मेलन पर बीजेपी ने जब सवाल खड़े किए थे कमलनाथ ने कहा कि बीजेपी ने भगवा का ठेका नहीं ले रखा, ना ही उसके पास भगवा का ट्रेडमार्क है. यानि कुल मिलाकर 18 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर हिंदुत्व के सहारे कब्जा जमाए बैठी बीजेपी को कांग्रेस उसी के अंदाज में परास्त करना चाहती है. 

सनातन विवाद से कांग्रेस को नुकसान होगा?

एक तरफ अपनी हिन्दूत्ववादी छवि बनाने में लगी कांग्रेस उस समय घिरी नजर आई जब इंडिया गठबंधन में शामिल तमिलनाडु के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर विवादित बयान दिया. जिसके बाद बीजेपी सनातन मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हावी नजर आई. पीएम मोदी से लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के बड़े नेताओं ने कांग्रेस, गांधी परिवार और कमलनाथ पर हमले बोले. यहीं नहीं प्रदेश कमलनाथ ने भोपाल में होने वाली विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की पहली साझा रैली को कैंसिल करने का ऐलान करना पड़ा. तब सवाल खड़ा हुआ था कि क्या कमलनाथ सनातन विवाद से डर गए?  अब सनातन विवाद का कितना असर हुआ ये तो चुनावों के नतीजों से ही पता चलेगा.  

बड़े चेहरों को उतारने का BJP को कितना फायदा?

बीजेपी को जिन विधानसभा क्षेत्रों में अपनी स्थिति कमजोर नजर आ रही थी. उन क्षेत्रों में उन्होंने पार्टी के बड़े चेहरों को उतारने का गणित लगाया है. आपको बता दें कि केंद्र की राजनीति से प्रदेशों में भेजे गए नेता भले ही चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर पाते हों, लेकिन उनके असर से आसपास के क्षेत्रों में बीजेपी को फायदा जरूर मिल जाता है. पहले भी बीजेपी कई राज्यों में ये फार्मूला आजमा चुकी है.

शिवराज सिंह चौहान का भविष्य क्या होगा?

मध्य प्रदेश की राजनीति में देखा जाए तो शिवराज सिंह चौहान सबसे बड़े चेहरे हैं. 64 वर्षीय शिवराज सिंह चौहान अभी भी लंबी राजनीतिक पारी खेलने की क्षमता रखते है. दिसंबर 2018 से मार्च 2020 के बीच के समय छोड़ दे तो लभगग 16 सालों तक शिवराज प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे है. इस बार का चुनाव उनका आगे का राजनीतिक भविष्य तय करेगा. 

उनके बाद कैलाश विजयवर्गीय भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं. कैलाश विजयवर्गीय जैसा जनाधार बाकी नेताओं का तो नहीं है, लेकिन अपने अपने इलाकों में स्थानीय नेताओं से ज्यादा प्रभाव तो रखते ही हैं. जैसे नरेंद्र सिंह तोमर का ग्वालियर, गुना और मुरैना जैसे क्षेत्रों में अच्छा खासा प्रभाव है. वहीं देखा जाए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद के बिना सरकार बनाना किसी के बूते की बात नहीं है. एमपी की सियासत भी इस बात की गवाह है. वो भी शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के तौर पर देखे जा रहे है.

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