Top News

चीन की इकोनॉमी क्यों बनती जा रही है दुनिया की चिंता, क्या कहते हैं आंकड़े?

 


चीन की अर्थव्यवस्था इन दिनों परेशानी से जूझ रही है. बीते दो सालों में पहली बार इस साल जुलाई में देश में आम लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सामानों की कीमत में काफी गिरावट दर्ज की गई है.

चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. साथ ही इस देश की आबादी भारत के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा है. जहां एक अरब चालीस करोड़ जनसंख्या निवास करती है. इतनी बड़ी आबादी के बीच चीन इन दिनों कई तरह की परेशानियों से घिरा हुआ है. जिसमें धीमी गति से होती विकास दर, बेरोजगारी और प्रॉपर्टी बाजार की उथल-पुथल शामिल है.

साथ ही ये देश इन दिनों डीफ्लेशन यानी अवस्फीति की स्थिति का भी सामना कर रहा है. ये स्थिति तब पैदा होती है जब बाजार में चीजों की मांग कम होने लगती है या उत्पादन जरूरत से ज्यादा होने लगता है या उपभोक्ता पैसा खर्च करने में संकोच करने लगता है. इसके अलावा चीन के रियल एस्टेट डेवलपर एवरग्रांडे के चेयरमैन को भी पुलिस ने अपनी निगरानी में रखा है. उनकी कंपनी के शेयरों को शेयर बाजार से निलंबित कर दिया गया है. एवरग्रांडे चीन की रियल एस्टेट के कारोबार में बड़ा नाम हैं जो वहां की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है.

ये मुद्दे चीन के लिए बड़ी समस्या हैं, हालांकि इनका असर सिर्फ इस देश तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि वैश्विक बाजार में भी इनका असर पड़ सकता है. विश्लेषकों के अनुसार, इसका सीधा असर बहुराष्ट्रीय कंपनियों, उनके कर्मचारियों और वहां काम करने वाले लोगों पर कैसे पड़ेगा वो इस बात पर निर्भर करता है कि कंपनी वहां से जुड़ी कैसे है.

कोविड महामारी का देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा असर

चीन की गिरती अर्थव्यवस्था ये सवाल खड़े कर रही है कि क्या ये देश कोविड महामारी के बाद उस गति से उभर नहीं पाया जिसकी उम्मीदें की जा रही थी.

बता दें चीन शून्य कोविड नीतियों से निकलकर वैश्विक गति की उम्मीद कर रहा था, लेकिन इस साल यहां की जीडीपी पिछले तीन महीनों में 0.8 प्रतिशत ही बढ़ी है.

अब अनुमानित वार्षिक वृद्धि 3 प्रतिशत के करीब ही है. जो पिछले तीन दशकों में सबसे ज्यादा कमजोर है.

यहां के अर्थशास्त्रियों को ये उम्मीदें थीं कि कोविड महामारी के बाद देश के लोग खर्च करने में तेजी से आगे बढ़ेंगे और निजी कंपनियों में पैसे भी लगाएंगे. जिसके चलते देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था भी सुधरेगी.

हालांकि शुरुआत में चीन की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार दिखने शुरू हुए थे. ऐसे में स्थानीय टूरिज्म, खुदरा और निर्यात की मांग में वृद्धि देखने को मिली थी. लेकिन ये सब ज्यादा नहीं चला.दूसरी तिमाही के अंत तक आर्थिक विश्लेषकों ने एक अलग कहानी बताई.

8 अगस्त के आंकड़ों से पता चला कि देश को तीन साल से अधिक समय में निर्यात में सबसे बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा है. चीन का निर्यात दिसंबर 2021 में $340 बिलियन के रिकॉर्ड उच्च स्तर से घटकर मई 2023 में $284 बिलियन हो गया.

जुलाई के निर्यात आंकड़े और भी अधिक चिंताजनक थे, जो कि एक साल पहले की अवधि की तुलना में 14.5% कम दर्ज किए गए थे.  सीमा शुल्क आंकड़ों से पता चलता है कि जून की 12.4% की गिरावट से निर्यात में गिरावट 281.8 बिलियन डॉलर तक गिर गई.

कमजोर घरेलू मांग के संकेतों के बीच आयात भी एक साल पहले की तुलना में 12.4% गिरकर 201.2 बिलियन डॉलर हो गया. इसके बाद देश का वैश्विक व्यापार एक साल पहले के रिकॉर्ड उच्च स्तर से 20.4% कम होकर 80.6 बिलियन डॉलर हो गया.

इसके बाद गंभीर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आंकड़े सामने आए. जिसमें चीन की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों में सबसे कम देखी गई.

गिरने वाली है चीन की अर्थव्यवस्था?

पिछले कुछ महीनों में बीजिंग से आने वाले आर्थिक आंकड़ों से ये संकेत मिलते हैं कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ सबकुछ ठीक नहीं है. जिसकी राष्ट्रपति शी-जिनपिंग को उम्मीद नहीं थी.

दुनियाभर की कई बड़ी कंपनियों का व्यापार चीन से चल रहा है. दरअसल एप्पल, बरबेरी और वॉक्सवैगन जैसी कई कंपनियां चीन से कच्चा सामान लेती हैं. जो देश के विशाल उपभोक्ता बाजार से निर्यात होता है. 

कहा जाता है दुनियाभर की एक तिहाई से अधिक विकास के पीछे चीन का हाथ है. ऐसे में चीन में मंदी का असर दिखता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार पर इसका असर देखने को मिल सकता है.अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने कुछ समय पहले ये बात कही थी कि चीन की मंदी वैश्विक विकास संभावनाओं पर असर डाल रही है. हालांकि इसके कुछ समय बाद एजेंसी ने पूरी दुनिया पर पड़ने वाले इसके असर को कम बताया.

कुछ अर्थशास्त्री ये भी मानते हैं कि चीन की मंदी का असर पूरी दुनिया पर पड़ना एक बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाली बात है.

यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के चाइना सेंटर के अर्थशास्त्री जॉर्ज मैग्नस ने बीबीसी से हुई बातचीत में बताया, "गणितीय रूप से ये सही है कि वैश्विक विकास में चीन का हिस्सा करीब 40 फीसदी का है."

उन्होंने आगे कहा, "लेकिन उस विकास का फायदा किसे हो रहा है? चीन एक विशाल व्यापार सरप्लस चलाता है. वो आयात की तुलना में निर्यात अधिक करता है, इसलिए चीन कितना बढ़ता है या नहीं, सही मायनों में कहा जाए तो इसका असर दुनिया के बाकी देशों की तुलना में चीन पर ज्यादा होगा."

वहीं दूसरी ओर चीन के बाजार में कच्चे माल की खपत कम हो रही है, क्योंकि देश में वस्तुओं सेवाओं या घरों के निर्माण पर खर्च कम हो रहा है. 

जिसके चलते इस साल अगस्त के महीने में चीन ने पिछले साल की तुलना में कच्चे माल का आयात 9 प्रतिशत कम किया था.

बीबीसी से हुई बातचीत में सिडनी के इंडो-पैसिफिक डेवलपमेंट सेंटर के निदेशक रोलैंड राजह बताते हैं, "ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और अफ्रीका के कई देशों, जैसे बड़े निर्यातकों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा."

चीन में गिरती कीमतों से क्यों बढ़ रही चिंता?

द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार,  चीन ने पिछले दशक में दुनिया की 41% खपत का सामान निर्यात किया है, जो अमेरिका के 22% योगदान से लगभग दोगुना है, और यूरो क्षेत्र के 9% योगदान से बहुत अधिक है.

इसका मतलब ये है कि चीन ने विश्व अर्थव्यवस्था की 2.6% वास्तविक विकास दर का 1.1 प्रतिशत माल उत्पन्न किया है. चीन में वैश्विक विकास का इतना बड़ा हिस्सा बनाया, क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था लगभग 8-9% प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही थी.

अब जबकि इसकी विकास दर आधी है तो इसका योगदान भी आधा होकर लगभग 0.5 अंक रह जाएगा. वहीं पिछले साल चीन ने बेल्ट एंड रोड परियोजना में भी बहुत बड़ा निवेश किया है. जो एक ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है.

ऐसे में चीन ने सड़क, समुद्री बंदरगाह और पुल बनाने के लिए 150 से ज्यादा देशों को तकनीकी मदद दी है.

अगर इस देश में लगातार मंदी की समस्या बनी रही तो इसका सीधा असर अभी चल रहे प्रोजेक्ट्स पर भी पड़ सकता है.

भारत-चीन व्यापार के आंकड़े

पिछले 26 सालों में भारत और चीन के बीच आयात-निर्यात काफी बढ़ा है.

चीन से होने वाला आयात हर साल 19.5 प्रतिशत बढ़ा है तो वहीं चीन को किया जाने वाले निर्यात में भी 16.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है.

2021 में भारत ने चीन से 94.1 अरब डॉलर का आयात किया था, वहीं चीन को भारत का निर्यात 23.1 अरब डॉलर रहा. 1995 में चीन से भारत का आयात 91.4 करोड़ डॉलर था जबकि चीन को निर्यात 42.4 करोड़ डॉलर था.

2023 तक दोनों देशों के बीच होने वाले आयात-निर्यात में कमी देखी गई, मई 2023 तक जहां भारत ने चीन से 9.5 अरब डॉलर का आयात किया, वहीं निर्यात 1.58 अरब डॉलर रहा.

लेकिन साल 2022 का आंकड़ा चौंकाने वाला रहा.  इस साल दोनों देशों के बीच व्यापार पहली बार 136 अरब डॉलर का रहा. 

ये वो वक्त था जब दोनों के रिश्ते कुछ खास नहीं चल रहे थे और व्यापार का आंकड़ा 100 अरब डॉलर के पार गया था.

ऐसे में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध इस बात की ओर इशारा करते हैं कि यदि चीन की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है तो उसका असर भारत पर भी देखने को मिलेगा.

बीबीसी से हुई बातचीत में प्रोफ़ेसर फैसल अहमद ने बताया, "आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी, नवंबर 2019 में भारत इससे बाहर हो गया था) के देशों को ये सामान सस्ते में मिलेगा और भारत को उनसे ये सामान मिल सकता है. ये भारत के लिए बड़ी चुनौती है."

वो कहते हैं आसियान देशों के साथ चीन का व्यापार समझौता है और इसके साथ भारत का भी मुक्त व्यापार समझौता है. भारत इसके नियमों में बदलाव चाहता है ताकि उसे सस्ते में चीजें मिलें और उसका आयात घाटा कम हो सके.

अवस्फीति का भी दिखेगा असर

दूसरे देशों की बात करें तो चीन ऐसी बहुत सी चीजों का निर्माण करता है जिसका निर्यात वो दूसरे देशों में भी करता है.

ऐसे में यदि चीन के बाजार में चीजें कम कीमत पर बेची जाती हैं तो उसका असर दूसरे देशों में होने वाले निर्यात पर भी पड़ेगा और दूसरे देशों को भी वो चीजें कम कीमत पर मिलेंगी.

हालांकि इसका साफ असर दूसरे देशों पर भी देखने को मिलेगा. जहां चीन का सस्ता सामान खरीदने पर दूसरे देशों में उस सामान के उत्पादन में कमी आएगी और उस देश की बेरोजगारी बढ़ेगी.

अब देखना ये होगा चीन की आगे की राह कैसी होने वाली है. वहीं वैश्विक बाजार में इसका कितना असर देखने को मिलता है. साथ ही भारत पर भी चीन की आर्थिक स्थिति का असर पड़ता है या नहीं.

Previous Post Next Post