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15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरू, इस शुभ मुहूर्त में करें कलश स्थापना, जानें नियम, महत्व

 


इस वर्ष 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है. शारदीय नवरात्रि का महापर्व आश्विन माह में मनाया जाता है. पूरे 9 दिनों तक दुर्गा मां के नौ स्वरूपों की पूजा-आराधना की जाती है. हिंदू धर्म में नवरात्रि त्योहार का खास महत्व है. इस दौरान लोग माता दुर्गा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं. दसवीं यानी 24 अक्टूबर को दशहरा सेलिब्रेट किया जाएगा. नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना करने का भी विशेष महत्व, लाभ और कुछ नियम होते हैं. हालांकि, शुभ मुहूर्त को देखकर ही कलश स्थापना की जानी चाहिए. मान्यता है कि कलश स्थापना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर सभी भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति करती हैं. उन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं.

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है? (Kalash Sthapana Shubh Muhurat)

नवरात्रि के नौ दिन बेहद शुभ होते हैं और पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. यदि आप भी दुर्गा पूजा पर अपने घर में कलश की स्थापना करने वाले हैं और पूरे नौ दिन व्रत पर रहने वाले हैं तो शुभ मुहूर्त का ध्यान रखते हुए ही ये शुभ कार्य करें. ज्योतिष एवं वास्तुविद (आगरा) प्रमोद कुमार अग्रवाल कहते हैं कि इस वर्ष कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को प्रातः 11:38 से दोपहर 12:23 बजे तक है. इस समय अभिजीत मुहूर्त है, जो पूजा पाठ के लिए शुभ माना जाता है.


कलश स्थापना के नियम (Navratri Kalash Sthapana ke Niyam)


1.  शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 15 अक्टूबर से हो रहा है. नौ दिनों तक माता भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना की जाएगी. इस वर्ष माता भगवती हाथी पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी, जो शुभ संकेत है.

2. नवरात्रि के शुभारंभ पर कलश स्थापना का विधान है. माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से स्थापित किया गया कलश सुख, संपन्नता और आरोग्य लेकर आता है. कलश मिट्टी, सोना, चांदी या तांबा का होना चाहिए. लोहे या स्टील का कलश प्रयोग नहीं करना चाहिए.


3. नवरात्रि के पहले दिन कलश की स्थापना घर की पूर्व या उत्तर दिशा में करनी चाहिए. इसके लिए कलश स्थापना वाली जगह को गंगा जल से शुद्ध करके वहां हल्दी से चौक पूरते हुए अष्टदल बनाना चाहिए.


4. कलश में शुद्ध जल लेकर हल्दी, अक्षत, लौंग, सिक्का, इलायची, पान और पुष्प डालने के बाद कलश के बाहर रोली से स्वास्तिक बनाया जाना चाहिए. इसके बाद, कलश को पवित्र की गई जगह पर स्थापित करते हुए मां भगवती का आह्वान करना चाहिए.

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